शुक्रवार, 26 सितंबर 2008

सभ्य बदमाश, सलीकेदार डकैती

पढ़ाई लिखाई का तो फर्क पड़ता ही है, पहले डकैत अमूमन अनपढ़ होते थे। वे गांवों में रहते हुए जंगल-बीहड़ों में निकल जाया करते थे। समय बदला और शिक्षा-दीक्षा की देश में बयार बह चली। परिणामस्वरूप डकैत शहरों में बसने लगे। अब वे जाहिल नहीं रहे हैं। वे आदर करना जानते हैं और दूसरे के सम्मान का पूरा ख्याल रखते हुए अपने काम को अंजाम देते हैं। विश्वास नहीं हो रहा है तो इसकी एक बानगी देखिए। फिर तो आपको विश्वास करना ही पड़ेगा कि हम एक सुशिक्षित भारत में रह रहे हैं-

'मास्टरजी, माफ करना ऐसा करना पड़ रहा है। हम आपको तकलीफ नहीं देना चाहते, लेकिन कया करें। इस कृत्य के लिए हमें क्षमा करना।` २५ सितंबर २००८ की रात को आगरा के शाहगंज के ज्योति नगर में इन्हीं डायलाग के साथ सभ्य बदमाशों ने सलीकेदार डकैती डाली। संख्या में छह नकाबपोश बदमाशों का डकैती के दौरान व्यवहार बेहद सलीकेदार रहा। तकलीफ के लिए क्षमा मांगते हुए परिजनों से घर की चाबी मांगी और ६० हजार रुपये एवं करीब सवा लाख के जेवरात लूट लिए। जाते-जाते गृह स्वामिनी के पैर छूकर एक बार फिर क्षमा मांगते गए।
रात करीब दो बजे आधा दर्जन नकाबपोश बदमाश घर की ऊपरी मंजिल की ग्रिल काटकर और मुख्य दरवाजे की कुंडी खोल घर में घुस आए। बदमाशों ने स्कूल चलाने वाले गृहस्वामी को मास्टरजी कहते हुए उठाया और तकलीफ के लिए माफी मांगते हुए उनके हाथ पीछे बांध दिए। उनकी पत्नी दूसरे कमरे में थी। उनके भी हाथ-पैर बांध दिए गए। बदमाशों के पास दुनाली बंदूक, तमंचा, सरिया और बैट था। बदमाशों ने कहा कि उनके अन्य साथी बाहर घर को घेरे खड़े हैं। हम आपको कष्ट नहीं पहुंचाना चाहते हैं, इसलिए जो मांगें वो देते रहें।
इसके बाद बदमाशों ने करीब ड़ेढ घंटे का समय घर में बेखौफ होकर बिताया। परिजनों से चाबियां मांगी और अलमारी से ६० हजार कैश निकाल लिया। लूटपाट के दौरान बदमाश परिजनों से सामान्य बातचीत भी करते रहे। जाते व त उन्होंने खाने की फरमाइश की। इस पर उन्हें फ्रिज में खाद्य सामग्री रखे होने की बात कही गई। बदमाशों ने मजे से फ्रिज से बिस्कुट, फल आदि खाए। इसी दौरान बदमाशों की नजर घर में रखी भगवती की तस्वीर पर पड़ी। इस पर उन्होंने पूछा कि पूजा कौन करता है। मास्टरजी के पत्नी की तरफ इशारा करने पर बदमाशों ने उनसे पैर छूकर क्षमा मांगी। इसके बाद बदमाश भाग निकले।





लिखने की जरूरत नाही है दिख रेला है भाई सब



पीटीआई के सौजन्य से साभार लिया गया चित्र
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गुरुवार, 25 सितंबर 2008

जरदारी के नाम खुला पत्र

शर्म आनी चाहिए तुम्हें। तुम अमेरिका लोगों की लुगाइयां देखने गए थे या संयुकत राष्ट ्र महासभा की बैठक में हिस्सा लेने। तुम तो मोहतरमा सारा पालिन के पीछे हाथ धोकर ही पड़ गए। माना कि वह खूबसूरत है पर है तो किसी दूसरे की लुगाई। हमने टीवी पर देखा किस तरह तुम उसका हाथ पकड़ कर जफफी पाने को बेताब हो रहे थे।
गए तो हमारे पीएम साहिब भी थे अमेरिका। उनसे सीखो जरदारी। उन्होंने एक महान राष्ट ्र के महान नेता का व्यवहार दिखाया, जबकि तुमने एक घटिया देश के घटिया नेता की तरह बचकानी हरकत की।
यही हाल रहा जरदारी पुततर तो एक दिन तुमहारी आईएसआई की फौज तुमहारे नीचे से ले लेगी तुम्हारी कुर्सी।




बुधवार, 24 सितंबर 2008

उड़नतश्तरी जी के लिए खास पाती

उड़नतश्तरियों (यूएफओ) का अस्तित्व भले ही सवालिया निशानों के दायरे में उलझा रहे, लेकिन उन्हें देखे जाने की बात आए दिन सामने आती है। ताजा घटनाक्रम के अनुसार बुधवार को रे आयलेट, नॉर्मी हुकर और एलन मैकिंटॉश नामक तीन ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों ने उड़नतश्तरी देखने का दावा किया। एलन ने बताया कि रात में घर के ऊपर से एक चमकती हुई वस्तु गुजरते देख वे और उनके साथी बुरी तरह से डर गए थे। घर से बाहर निकलने पर वह उड़नतश्तरी उनका पीछा करने लगी। इसके बाद अचानक वह पूरब दिशा में गायब हो गई। उड़नतश्तरी से कोई आवाज नहीं आ रही थी।
दूसरी ओर इनके दावों को हम पुष्ट करते हैं। इन लोगों ने उड़न तश्तरी को आज ही देखा है, लेकिन हम तो रोज ही हर बलाग पर उड़नतश्तरी को देखा करते हैं। उड़नतश्तरी उड़ते हुए थाे़डा-थाे़डा हर बलाग पर ठहरती है, अपने निशां छाे़डती है और आगे बढ़ जाती है।
बहरहाल आस्ट्रेलिया वासियों हमारी वाली उड़नतश्तरी को देख कर डरने क जरूरत नहीं है। इनको अपने बलाग पर देखकर तमाम बलागर केचेहरे पर मीठी मुस्कान तैर जाती है। बहुत सारे तो इनकी शकल देख कर बालीवुड के 'सौरभ शुकला` समझ लेते हैं। कयोंकि ये 'कुंभ` के मेले में बिछड़े उनकेभाई जैसे लगते हैं।