पढ़ाई लिखाई का तो फर्क पड़ता ही है, पहले डकैत अमूमन अनपढ़ होते थे। वे गांवों में रहते हुए जंगल-बीहड़ों में निकल जाया करते थे। समय बदला और शिक्षा-दीक्षा की देश में बयार बह चली। परिणामस्वरूप डकैत शहरों में बसने लगे। अब वे जाहिल नहीं रहे हैं। वे आदर करना जानते हैं और दूसरे के सम्मान का पूरा ख्याल रखते हुए अपने काम को अंजाम देते हैं। विश्वास नहीं हो रहा है तो इसकी एक बानगी देखिए। फिर तो आपको विश्वास करना ही पड़ेगा कि हम एक सुशिक्षित भारत में रह रहे हैं-
'मास्टरजी, माफ करना ऐसा करना पड़ रहा है। हम आपको तकलीफ नहीं देना चाहते, लेकिन कया करें। इस कृत्य के लिए हमें क्षमा करना।` २५ सितंबर २००८ की रात को आगरा के शाहगंज के ज्योति नगर में इन्हीं डायलाग के साथ सभ्य बदमाशों ने सलीकेदार डकैती डाली। संख्या में छह नकाबपोश बदमाशों का डकैती के दौरान व्यवहार बेहद सलीकेदार रहा। तकलीफ के लिए क्षमा मांगते हुए परिजनों से घर की चाबी मांगी और ६० हजार रुपये एवं करीब सवा लाख के जेवरात लूट लिए। जाते-जाते गृह स्वामिनी के पैर छूकर एक बार फिर क्षमा मांगते गए।
रात करीब दो बजे आधा दर्जन नकाबपोश बदमाश घर की ऊपरी मंजिल की ग्रिल काटकर और मुख्य दरवाजे की कुंडी खोल घर में घुस आए। बदमाशों ने स्कूल चलाने वाले गृहस्वामी को मास्टरजी कहते हुए उठाया और तकलीफ के लिए माफी मांगते हुए उनके हाथ पीछे बांध दिए। उनकी पत्नी दूसरे कमरे में थी। उनके भी हाथ-पैर बांध दिए गए। बदमाशों के पास दुनाली बंदूक, तमंचा, सरिया और बैट था। बदमाशों ने कहा कि उनके अन्य साथी बाहर घर को घेरे खड़े हैं। हम आपको कष्ट नहीं पहुंचाना चाहते हैं, इसलिए जो मांगें वो देते रहें।
इसके बाद बदमाशों ने करीब ड़ेढ घंटे का समय घर में बेखौफ होकर बिताया। परिजनों से चाबियां मांगी और अलमारी से ६० हजार कैश निकाल लिया। लूटपाट के दौरान बदमाश परिजनों से सामान्य बातचीत भी करते रहे। जाते व त उन्होंने खाने की फरमाइश की। इस पर उन्हें फ्रिज में खाद्य सामग्री रखे होने की बात कही गई। बदमाशों ने मजे से फ्रिज से बिस्कुट, फल आदि खाए। इसी दौरान बदमाशों की नजर घर में रखी भगवती की तस्वीर पर पड़ी। इस पर उन्होंने पूछा कि पूजा कौन करता है। मास्टरजी के पत्नी की तरफ इशारा करने पर बदमाशों ने उनसे पैर छूकर क्षमा मांगी। इसके बाद बदमाश भाग निकले।
शुक्रवार, 26 सितंबर 2008
गुरुवार, 25 सितंबर 2008
जरदारी के नाम खुला पत्र
शर्म आनी चाहिए तुम्हें। तुम अमेरिका लोगों की लुगाइयां देखने गए थे या संयुकत राष्ट ्र महासभा की बैठक में हिस्सा लेने। तुम तो मोहतरमा सारा पालिन के पीछे हाथ धोकर ही पड़ गए। माना कि वह खूबसूरत है पर है तो किसी दूसरे की लुगाई। हमने टीवी पर देखा किस तरह तुम उसका हाथ पकड़ कर जफफी पाने को बेताब हो रहे थे।
गए तो हमारे पीएम साहिब भी थे अमेरिका। उनसे सीखो जरदारी। उन्होंने एक महान राष्ट ्र के महान नेता का व्यवहार दिखाया, जबकि तुमने एक घटिया देश के घटिया नेता की तरह बचकानी हरकत की।
यही हाल रहा जरदारी पुततर तो एक दिन तुमहारी आईएसआई की फौज तुमहारे नीचे से ले लेगी तुम्हारी कुर्सी।
गए तो हमारे पीएम साहिब भी थे अमेरिका। उनसे सीखो जरदारी। उन्होंने एक महान राष्ट ्र के महान नेता का व्यवहार दिखाया, जबकि तुमने एक घटिया देश के घटिया नेता की तरह बचकानी हरकत की।
यही हाल रहा जरदारी पुततर तो एक दिन तुमहारी आईएसआई की फौज तुमहारे नीचे से ले लेगी तुम्हारी कुर्सी।
बुधवार, 24 सितंबर 2008
उड़नतश्तरी जी के लिए खास पाती
उड़नतश्तरियों (यूएफओ) का अस्तित्व भले ही सवालिया निशानों के दायरे में उलझा रहे, लेकिन उन्हें देखे जाने की बात आए दिन सामने आती है। ताजा घटनाक्रम के अनुसार बुधवार को रे आयलेट, नॉर्मी हुकर और एलन मैकिंटॉश नामक तीन ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों ने उड़नतश्तरी देखने का दावा किया। एलन ने बताया कि रात में घर के ऊपर से एक चमकती हुई वस्तु गुजरते देख वे और उनके साथी बुरी तरह से डर गए थे। घर से बाहर निकलने पर वह उड़नतश्तरी उनका पीछा करने लगी। इसके बाद अचानक वह पूरब दिशा में गायब हो गई। उड़नतश्तरी से कोई आवाज नहीं आ रही थी।
दूसरी ओर इनके दावों को हम पुष्ट करते हैं। इन लोगों ने उड़न तश्तरी को आज ही देखा है, लेकिन हम तो रोज ही हर बलाग पर उड़नतश्तरी को देखा करते हैं। उड़नतश्तरी उड़ते हुए थाे़डा-थाे़डा हर बलाग पर ठहरती है, अपने निशां छाे़डती है और आगे बढ़ जाती है।
बहरहाल आस्ट्रेलिया वासियों हमारी वाली उड़नतश्तरी को देख कर डरने क जरूरत नहीं है। इनको अपने बलाग पर देखकर तमाम बलागर केचेहरे पर मीठी मुस्कान तैर जाती है। बहुत सारे तो इनकी शकल देख कर बालीवुड के 'सौरभ शुकला` समझ लेते हैं। कयोंकि ये 'कुंभ` के मेले में बिछड़े उनकेभाई जैसे लगते हैं।
दूसरी ओर इनके दावों को हम पुष्ट करते हैं। इन लोगों ने उड़न तश्तरी को आज ही देखा है, लेकिन हम तो रोज ही हर बलाग पर उड़नतश्तरी को देखा करते हैं। उड़नतश्तरी उड़ते हुए थाे़डा-थाे़डा हर बलाग पर ठहरती है, अपने निशां छाे़डती है और आगे बढ़ जाती है।
बहरहाल आस्ट्रेलिया वासियों हमारी वाली उड़नतश्तरी को देख कर डरने क जरूरत नहीं है। इनको अपने बलाग पर देखकर तमाम बलागर केचेहरे पर मीठी मुस्कान तैर जाती है। बहुत सारे तो इनकी शकल देख कर बालीवुड के 'सौरभ शुकला` समझ लेते हैं। कयोंकि ये 'कुंभ` के मेले में बिछड़े उनकेभाई जैसे लगते हैं।
सोमवार, 11 अगस्त 2008
लालू की प्राकृतिक क्रिया
-राजीव थपलियाल
लालू जी का हैलीकाप्टर सड़क पर या उतरा कि हंगामा मच गया। जबकि, हंगामेदारों को लालू जी का धन्यवाद करना चाहिए कि उन्होंने बिहार की सड़कों को इज्जत बख्शी। हम इसमें लालू जी की तर कीपंसद छवि देख सकते हैं। लालू ने बिहार की सड़कों को अमेरिका-ब्रिटेन की सड़कों के तुलनीय माना है। भले ही अटल बिहारी वाजपेयी की चुतुर्भुज योजना का बिहार में बंटाधार हुआ हो, लेकिन लालू जी ने सड़कों की हालात से पूरे विश्व को जतला दिया है कि बिहार की सड़कों पर गाड़ियां ही नहीं हैलीकाप्टर भी पींगे मार सकते हैं।
वैसे सूत्रों का कहना है कि प्राकृतिक क्रिया ने हैलीकाप्टर की गति में व्यवधान डाला था, जिसके चलते उसे आपातकाल में बीच सड़क उतारना पड़ा। अब प्राकृतिक क्रिया से पीड़ित कौन था यह तो रहस्य है, लेकिन हमें उसकी भलमनसाहत की हमें दाद देनी चाहिए।
हालांकि लालू जी बाढ़ प्रभावित एरिया में जा रहे थे। जगह-जगह पानी-पानी था और यह पानी आसमान से ही टपका था। ऐसी हालत में यदि हैलीकाप्टर वासी भी अपने प्राकृतिक अंशों को नीचे गिरा देते तो किसी को मालूम भी नहीं चलता। हां इस दौरान यह खबर जरूर उड़ जाती कि लोगों ने आसमान से उल्का पिंड के अंश पानी की बौछारों के साथ गिरते देखे हैं। टीवी चैनल वालों को भी दो-चार दिन का 'दर्शक झेलाऊ` मसाला मिल जाता। शायद, यहीं पर चूक हुई और इस चूक ने बखे़डा खड़ा करवा दिया।
इसके अलावा यह भी हो सकता है कि लालू जी ठहरे रेलमंत्री। रेल यात्री जिन खुले मन से 'त्याग` कर्म में संलग्न रहते हैं, उसी भाव से रेल के मंत्री भी सफर के दौरान विसर्जन क्रिया को उद्यत हुए होंगे। उनको बस सफर के दौरान झाड़ी की ओट में जाने की आदत है और रेल अथवा हवाई जहाज के सफर में प्राकृतिक क्रिया के लिए अप्राकृतिक व्यवस्थाएं हैं। पर, हैलीकाप्टर यात्रा में ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया गया है। अब सोचिए, जो हंगामा मचा रहे हैं वे ऐसी सिच्यूएशन में फंसते तो या करते।
इस घटना से वैज्ञानिकों और यांत्रिकों के लिए भी शोध का नया विषय मिला है। उनको हैलीकाप्टर में प्राकृतिक क्रिया से निपटने के साधन विकसित करने का मौका मिला है। हैलीकाप्टर क्रांति में हाजत की व्यवस्था एक महान मील का पत्थर मानी जाएगी, जिसके लिए आने वाली पीढ़ियां लालू जी की अभारी रहेंगी।
लालू जी का हैलीकाप्टर सड़क पर या उतरा कि हंगामा मच गया। जबकि, हंगामेदारों को लालू जी का धन्यवाद करना चाहिए कि उन्होंने बिहार की सड़कों को इज्जत बख्शी। हम इसमें लालू जी की तर कीपंसद छवि देख सकते हैं। लालू ने बिहार की सड़कों को अमेरिका-ब्रिटेन की सड़कों के तुलनीय माना है। भले ही अटल बिहारी वाजपेयी की चुतुर्भुज योजना का बिहार में बंटाधार हुआ हो, लेकिन लालू जी ने सड़कों की हालात से पूरे विश्व को जतला दिया है कि बिहार की सड़कों पर गाड़ियां ही नहीं हैलीकाप्टर भी पींगे मार सकते हैं।
वैसे सूत्रों का कहना है कि प्राकृतिक क्रिया ने हैलीकाप्टर की गति में व्यवधान डाला था, जिसके चलते उसे आपातकाल में बीच सड़क उतारना पड़ा। अब प्राकृतिक क्रिया से पीड़ित कौन था यह तो रहस्य है, लेकिन हमें उसकी भलमनसाहत की हमें दाद देनी चाहिए।
हालांकि लालू जी बाढ़ प्रभावित एरिया में जा रहे थे। जगह-जगह पानी-पानी था और यह पानी आसमान से ही टपका था। ऐसी हालत में यदि हैलीकाप्टर वासी भी अपने प्राकृतिक अंशों को नीचे गिरा देते तो किसी को मालूम भी नहीं चलता। हां इस दौरान यह खबर जरूर उड़ जाती कि लोगों ने आसमान से उल्का पिंड के अंश पानी की बौछारों के साथ गिरते देखे हैं। टीवी चैनल वालों को भी दो-चार दिन का 'दर्शक झेलाऊ` मसाला मिल जाता। शायद, यहीं पर चूक हुई और इस चूक ने बखे़डा खड़ा करवा दिया।
इसके अलावा यह भी हो सकता है कि लालू जी ठहरे रेलमंत्री। रेल यात्री जिन खुले मन से 'त्याग` कर्म में संलग्न रहते हैं, उसी भाव से रेल के मंत्री भी सफर के दौरान विसर्जन क्रिया को उद्यत हुए होंगे। उनको बस सफर के दौरान झाड़ी की ओट में जाने की आदत है और रेल अथवा हवाई जहाज के सफर में प्राकृतिक क्रिया के लिए अप्राकृतिक व्यवस्थाएं हैं। पर, हैलीकाप्टर यात्रा में ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया गया है। अब सोचिए, जो हंगामा मचा रहे हैं वे ऐसी सिच्यूएशन में फंसते तो या करते।
इस घटना से वैज्ञानिकों और यांत्रिकों के लिए भी शोध का नया विषय मिला है। उनको हैलीकाप्टर में प्राकृतिक क्रिया से निपटने के साधन विकसित करने का मौका मिला है। हैलीकाप्टर क्रांति में हाजत की व्यवस्था एक महान मील का पत्थर मानी जाएगी, जिसके लिए आने वाली पीढ़ियां लालू जी की अभारी रहेंगी।
मंगलवार, 29 जुलाई 2008
पत्रकार और कुकुरामुत्त
आज कल पत्रकार बनने की होड़ लगी हुई है, और लोगो की इस अभिलाषा को पूरा करने पत्रकारिता के कालेज कुकुरमुत्तों की तरह खुल गए हैं,आइये पत्रकार और पत्रकारिता में भविष्य के सुनहरी संभावनाओ को तलाशें॥
पत्रकार कौन होते हैं?..वे लोग जिनकी गाड़ियों पे 'प्रेस' लिखा होता है,वे इस ख़ुशफ़ेहमी(और ग़लतफहमी) में रहते हैं की वे बड़े क्रियेटिव हैं और पूरे समाज के 'सुधार का ठेका' उनके कंधों पे है, और जब कंधे दुखने लगते हैं तो वे शराब के ठेकों पर नज़र आते हैं। पत्रकार बनने की पहली शर्त है,आपको चिकेट चाय और गालियाँ पकाना और पचाना आना चाहिए। आप में योग्यता का 'य' अथवा क़ाबलियत का 'क' न हो किंतु आपके पास 'बड़े-बड़े सोर्से' होना आती आवश्यक है। अगर आप एनजीओ से (NGO) जुड़ें हों तो लोग आपको सुनहरे पंखों वाला पत्रकार समझेंग।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और इलेक्ट्रोंन में काफ़ी समानता होती है दोनों में ऋण आवेश होता है । अच्छे-अच्छे प्रोटान यहाँ इलेक्ट्रोंन ,नहीं तो न्योट्रांन में तब्दील हो गये. मीडिया में जो प्रोटॉन दिखते हैं सुकचम अध्ययन में वो भी नही हैं।
सो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सुनहर भविष्ट संजाओने वालों का भगवान ही मालिक। आप भले पॉलिटिक्स की बारीक समझ रखते हों,अरुणाचल प्रदेश के कृषी मंत्री तक का नाम जानते हो ,पर भूत-पिशाच पर रिपोर्ट देने को तैयार रहें।
ग़लती से भी किसी स्टिंग ऑपरेशन टीम का हिस्सा न बनें,यहा मेहनत कोई करता है क्रेडिट कोई और लूटता है।
वैसे स्टिंग ऑपरेशन दिखाने के हज़ार और न दिखाने के लाखों मिलते हैं ,पर आपको मेहनताना वही दिया जाएगा,
मतलब आपकी इमानदारी और बेईमानी का मूल्य बराबर हुआ।
इंग्लीश प्रिंट मीडिया को अपना भविष्य बनाने वाले लोग ख़ुशकिस्मत है..वो इतना कमा सकते हैं की अपने मोबाइल रीचार्ज करा सकें और महीने की शुरुआती दिनों में अपने गाड़ियों में पेट्रोल भरवा सकें,
इसलिए इनमे 'पत्रकारिता का कीड़ा' काफ़ी वक़्त तक ज़िंदा रहता है।
हिंदी प्रिंट मीडिया में नये लोगों को 6-7 वरसों तक अपने पूर्वजों के धन पर आश्रित रहना पड़ता है। कुछ विरले ही होते हैं जो तीन अंक के आकड़ों में सॅलरी ,साल भर में कमाने लगते हैं । सामान्यता सालों तक लोग मुफ़्त में काम करते हैं अब जब पैसा न कौड़ी तो भाई हिंदी प्रिंट मीडिया में कोई क्यो जाए?..बस लोग जातें हैं 'भोकाल' में .शान से गाड़ी में प्रेस(Press) लिखवाते हैं और भोकाल में बताते हैं हम 'फलाँ समाचार पत्र' के पत्रकार है।
वैसे पत्रकार बनाना तो एक सर दर्द है,पर उससे बड़ा सरदर्द है 'पत्रकार बने रहना' ।
आप में राईटिंग स्किल्स है तो एसा नहीं आप कुछ भी लिख सकते हैं?यहाँ एसी-एसी स्क्रिप्ट लिखने को मिलेगी आप लिखना भूल सकते हैं और हाँ अपनी क़ाबलियत का ढिंढोरा न पीतें ,आप काम के अतरिक्त बोझ के साथ साथ अपने सह पत्रकारों के आँखों की किरकिरी बन जायंगे. और इतने काबिल न दिखिए कि आपका सीनियर बेवकूफ़ लगाने लगे . अगर आपको मीडिया का हिस्सा बने रहना है तो ये जानते और मानते हुए कि आपका सीनियर बेवकूफ़ है उसपे ये बात ज़ाहिर न करें उनकी प्रशंसा के पुल बाँध दें .
सीनियर पत्रकारों से डिबेट,वाद-विवाद करें पर उन्हें ही जितने का मौका दें। अगर एक डिबेट में आपके जीत का सूरज उग गया तो अपके पत्रकारिता का भविष्य अन्धकारमय हो सकता है।
इतना पढ़ाने के बाद अप में पत्रकार बनने या बने रहने कि इच्छा है तो यकीं मानिए आप पत्रकार बन सकते हैं
शुभकामनाओं सहित।
-गौरव
पत्रकार कौन होते हैं?..वे लोग जिनकी गाड़ियों पे 'प्रेस' लिखा होता है,वे इस ख़ुशफ़ेहमी(और ग़लतफहमी) में रहते हैं की वे बड़े क्रियेटिव हैं और पूरे समाज के 'सुधार का ठेका' उनके कंधों पे है, और जब कंधे दुखने लगते हैं तो वे शराब के ठेकों पर नज़र आते हैं। पत्रकार बनने की पहली शर्त है,आपको चिकेट चाय और गालियाँ पकाना और पचाना आना चाहिए। आप में योग्यता का 'य' अथवा क़ाबलियत का 'क' न हो किंतु आपके पास 'बड़े-बड़े सोर्से' होना आती आवश्यक है। अगर आप एनजीओ से (NGO) जुड़ें हों तो लोग आपको सुनहरे पंखों वाला पत्रकार समझेंग।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और इलेक्ट्रोंन में काफ़ी समानता होती है दोनों में ऋण आवेश होता है । अच्छे-अच्छे प्रोटान यहाँ इलेक्ट्रोंन ,नहीं तो न्योट्रांन में तब्दील हो गये. मीडिया में जो प्रोटॉन दिखते हैं सुकचम अध्ययन में वो भी नही हैं।
सो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सुनहर भविष्ट संजाओने वालों का भगवान ही मालिक। आप भले पॉलिटिक्स की बारीक समझ रखते हों,अरुणाचल प्रदेश के कृषी मंत्री तक का नाम जानते हो ,पर भूत-पिशाच पर रिपोर्ट देने को तैयार रहें।
ग़लती से भी किसी स्टिंग ऑपरेशन टीम का हिस्सा न बनें,यहा मेहनत कोई करता है क्रेडिट कोई और लूटता है।
वैसे स्टिंग ऑपरेशन दिखाने के हज़ार और न दिखाने के लाखों मिलते हैं ,पर आपको मेहनताना वही दिया जाएगा,
मतलब आपकी इमानदारी और बेईमानी का मूल्य बराबर हुआ।
इंग्लीश प्रिंट मीडिया को अपना भविष्य बनाने वाले लोग ख़ुशकिस्मत है..वो इतना कमा सकते हैं की अपने मोबाइल रीचार्ज करा सकें और महीने की शुरुआती दिनों में अपने गाड़ियों में पेट्रोल भरवा सकें,
इसलिए इनमे 'पत्रकारिता का कीड़ा' काफ़ी वक़्त तक ज़िंदा रहता है।
हिंदी प्रिंट मीडिया में नये लोगों को 6-7 वरसों तक अपने पूर्वजों के धन पर आश्रित रहना पड़ता है। कुछ विरले ही होते हैं जो तीन अंक के आकड़ों में सॅलरी ,साल भर में कमाने लगते हैं । सामान्यता सालों तक लोग मुफ़्त में काम करते हैं अब जब पैसा न कौड़ी तो भाई हिंदी प्रिंट मीडिया में कोई क्यो जाए?..बस लोग जातें हैं 'भोकाल' में .शान से गाड़ी में प्रेस(Press) लिखवाते हैं और भोकाल में बताते हैं हम 'फलाँ समाचार पत्र' के पत्रकार है।
वैसे पत्रकार बनाना तो एक सर दर्द है,पर उससे बड़ा सरदर्द है 'पत्रकार बने रहना' ।
आप में राईटिंग स्किल्स है तो एसा नहीं आप कुछ भी लिख सकते हैं?यहाँ एसी-एसी स्क्रिप्ट लिखने को मिलेगी आप लिखना भूल सकते हैं और हाँ अपनी क़ाबलियत का ढिंढोरा न पीतें ,आप काम के अतरिक्त बोझ के साथ साथ अपने सह पत्रकारों के आँखों की किरकिरी बन जायंगे. और इतने काबिल न दिखिए कि आपका सीनियर बेवकूफ़ लगाने लगे . अगर आपको मीडिया का हिस्सा बने रहना है तो ये जानते और मानते हुए कि आपका सीनियर बेवकूफ़ है उसपे ये बात ज़ाहिर न करें उनकी प्रशंसा के पुल बाँध दें .
सीनियर पत्रकारों से डिबेट,वाद-विवाद करें पर उन्हें ही जितने का मौका दें। अगर एक डिबेट में आपके जीत का सूरज उग गया तो अपके पत्रकारिता का भविष्य अन्धकारमय हो सकता है।
इतना पढ़ाने के बाद अप में पत्रकार बनने या बने रहने कि इच्छा है तो यकीं मानिए आप पत्रकार बन सकते हैं
शुभकामनाओं सहित।
-गौरव
रविवार, 22 जून 2008
मायाजाल में मुलायम
यूपी चुनावों में हारने के बाद मुलायम सिंह यादव ने अपने आराध्य देव की शरण ली। उन्होंने आंसुआें से लबालब भरे नैनों और भर्राए गले से पूछा,
'हे देव! आपने या मायाजाल फैला डाला, जो अपना सिंहासन डोल गया? `
देव ने कहा, 'वत्स मुलायम हम देवों का अस्त्र माया ही तो है। यदि हमारे पास माया न हो तो निसंदेह मानव हमें पूछे भी नहीं। `
'महाप्रभु, आप अंतरयामी होकर या कह रहे हैं। मैने तो सदैव आपको माना। माया का तो मैं परम विरोधी रहा हूं। मैने प्रजा को माया के मोह से बचाने के लिए तमाम कर्म किए। इस पर भी आप मुझ पर आरोप लगा रहे हैं।` मुलायम ने प्रत्युत्तर दिया।
यह सुनते ही देव ने मधुर मुस्कान फेंकी और बोले, 'पांच साल तक तुम माया च कर में ही तो फंसे रहे। तुम माया को लपेटने के फेर में फंसकर आज इस अधोगति के भागी बने हो। तुमने माया को ताज में लपेटा, माया के निगहबानों को घसीटा और माया का हर जगह बखान किया। इसलिए तुम्हारी शिकायत बेकार है कि आज राज्य में सबकुछ माया मय हो चुका है।`
भर्राए मुलायम के शिकायती बोल फूटे, 'देव मैं तो मायाविहीन सम्राज्य की स्थापना करना चाहता था। परंतु आपने ही सहयोग नहीं दिया। आप थाे़डी भी कृपा दृष्टि डालते तो यूपी माया से मु त होता।`
इस पर देव ने कहा, 'बालकों की तरह बात न करो मुलायम। तुम अच्छी तरह जानते हो कि खुद देवाधिदेव भी माया के बल पर ही इस संसार को चलाते हैें। तो फिर हम देव माया से अलग कैसे हो सकते हैं। माया के दम पर ही तो परमात्मा का शासन मृत्युलोक पर चलता है। वैसे ही यूपी तमाम भगवानों की जन्म और कर्मस्थली रही है। यहीं पर सतयुग में राजा हरिचंद्र के साथ माया ने खिलवाड़ किया, फिर तेत्रायुग में भगवान राम और द्वापर युग में कृष्ण ने मायाचार किया। सो इस कलियुग को माया से कैसे छुटकारा मिल सकता है।
इसलिए तू भी इस सत्य को जान और मान। यूपी में तू अपने अमर बचन माया को समर्पित कर कल्याण को प्राप्त हो। `
इतना कहकर देव अंतरधान हो गए और मुलायम देव के मायाजाल में उलझकर फिर माया के बारे में सोचने लगे।
'हे देव! आपने या मायाजाल फैला डाला, जो अपना सिंहासन डोल गया? `
देव ने कहा, 'वत्स मुलायम हम देवों का अस्त्र माया ही तो है। यदि हमारे पास माया न हो तो निसंदेह मानव हमें पूछे भी नहीं। `
'महाप्रभु, आप अंतरयामी होकर या कह रहे हैं। मैने तो सदैव आपको माना। माया का तो मैं परम विरोधी रहा हूं। मैने प्रजा को माया के मोह से बचाने के लिए तमाम कर्म किए। इस पर भी आप मुझ पर आरोप लगा रहे हैं।` मुलायम ने प्रत्युत्तर दिया।
यह सुनते ही देव ने मधुर मुस्कान फेंकी और बोले, 'पांच साल तक तुम माया च कर में ही तो फंसे रहे। तुम माया को लपेटने के फेर में फंसकर आज इस अधोगति के भागी बने हो। तुमने माया को ताज में लपेटा, माया के निगहबानों को घसीटा और माया का हर जगह बखान किया। इसलिए तुम्हारी शिकायत बेकार है कि आज राज्य में सबकुछ माया मय हो चुका है।`
भर्राए मुलायम के शिकायती बोल फूटे, 'देव मैं तो मायाविहीन सम्राज्य की स्थापना करना चाहता था। परंतु आपने ही सहयोग नहीं दिया। आप थाे़डी भी कृपा दृष्टि डालते तो यूपी माया से मु त होता।`
इस पर देव ने कहा, 'बालकों की तरह बात न करो मुलायम। तुम अच्छी तरह जानते हो कि खुद देवाधिदेव भी माया के बल पर ही इस संसार को चलाते हैें। तो फिर हम देव माया से अलग कैसे हो सकते हैं। माया के दम पर ही तो परमात्मा का शासन मृत्युलोक पर चलता है। वैसे ही यूपी तमाम भगवानों की जन्म और कर्मस्थली रही है। यहीं पर सतयुग में राजा हरिचंद्र के साथ माया ने खिलवाड़ किया, फिर तेत्रायुग में भगवान राम और द्वापर युग में कृष्ण ने मायाचार किया। सो इस कलियुग को माया से कैसे छुटकारा मिल सकता है।
इसलिए तू भी इस सत्य को जान और मान। यूपी में तू अपने अमर बचन माया को समर्पित कर कल्याण को प्राप्त हो। `
इतना कहकर देव अंतरधान हो गए और मुलायम देव के मायाजाल में उलझकर फिर माया के बारे में सोचने लगे।
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